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Tuesday, March 29, 2011

मस्त है यह सानिया भी-6

एक-एक बूँद आँसू उसके दोनों गालों पर बह निकले। उसने अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया।

5-6 सेकेण्ड बाद मुस्कुराते हुए हाथ हटाए और बोली- बेटीचोद !

और मेरे गले से लिपट गई।

सानिया की आँख भी गीली हो गई। उसकी नजरों में भी मेरे लिए अब प्यार दिख रहा था। वो बोली- मैं आप दोनों के लिए पानी लाती हूँ !

और वो बाहर चली गई।

जब वो पानी लेकर आई तब मैं कुर्सी पर बैठा था और रागिनी बिस्तर ठीक कर रही थी। हम दोनों अभी भी नंगे ही थे। मेरा लण्ड एक दम शांत और भोला बच्चा बन गया था। पानी आगे करते हुए सानिया बोली- चाचू ! अब आप दोनों सो जाएँ, बारह बजने को हो रहे हैं। अब कल सुबह मैं चाय लाऊँगी आप दोनों के लिए।

फ़िर हँसते हुए कमरे में से भाग गई।

अगली सुबह सानिया ने ही कमरे में आकर मुझे और रागिनी को जगाया। मैने देखा कि सानिया के हाथ की ट्रे में दो गिलास पानी और अखबार है। मैं और रागिनी अभी भी नंगे थे जैसे कि हम रात को सो गए थे। रागिनी पानी पीकर बाथरुम की तरफ़ चल दी और मैंने उसका तकिया उठा कर अपने गोद में रख लिया जिससे मेरे लण्ड को सानिया नहीं देखे। सानिया यह सब देख बड़े कातिलाना अंदाज में मुस्कुराई, फ़िर चाय लाने चली गई।

मैंने अखबार खोल लिया। जब सानिया चाय लेकर आई, तब तक रागिनी भी बाहर आ गई थी और अपने कपड़े जमीन पर से समेट रही थी। सानिया सिर्फ़ एक कप चाय लाई थी, जिसे उसने रागिनी की तरफ़ बढ़ा दिया।

रागिनी ने चाय ली और पूछा- अंकल की और तुम्हारी चाय ?

अब जो सानिया ने कहा उसे सुन कर मेरी नसें गर्म हो गई। बड़ी सेक्सी आवाज में हल्के से फ़ुसफ़ुसा कर सानिया बोली- तुम पीयो चाय, चाचू को आज मैं अपना दूध पिलाऊँगी !

और उसने अपने टॉप को नीचे से पकड़ कर उठाते हुए एक ही लय में अपने सर के उपर से निकाल दिया।

मेरे मुँह से निकल गया- जीयो जान ! क्या मस्त चूचियाँ निकली है तेरी।

सच उसकी संतरे जैसी गोल-गोल गोरी-गोरी चूचियाँ गजब का नजारा पेश कर रही थी और उन पर गुलाबी-गुलाबी लगभग आधे आकार को घेरे हुए चुचक बेमिसाल लग रहे थे। सानिया के बदन के गोरेपन का जवाब नहीं था। वो इसके बाद मेरे बदन पर ही चढ़ आई।

मैंने पहले उसके चेहरे को पकड़ा और फ़िर उसके गुलाबी होठों का रस पीने लगा। उसका बदन हल्का सा गर्म हो रहा था, जैसे बुखार सा चढ़ रहा हो। बन्द आँखों के साथ वो हसीना अब टॉपलेस मेरे बाहों में थी। मैंने रागिनी की तरफ़ देखा। वो मुझे देख मुस्कुरा रही थी और चाय की चुस्की ले रही थी।

मैंने सानिया को अपने बदन से थोड़ा हटाया और फ़िर उसकी दाहिनी चूची का चुचूक मुँह में लेकर उसे चुभलाने लगा। सानिया आँख बंद करके सिसकी भर रही थी और मैं मस्त होकर उसकी चूचियों से खेल रहा था, चूस रहा था।

वो भी मस्त हो रही थी।

मैंने अपने हाथ थोड़ा आगे कर उसकी कैप्री के बटन खोले और फ़िर उसको अपने सामने बिस्तर पर सीधा लिटा दिया। भीतर काली पैन्टी की झलक मुझे मिल रही थी। प्यार से पहले मैंने कैप्री उतार दी। फ़िर मक्खन जैसी जाँघों को सहलाते हुए भीतर की तरफ़ जाँघ पर 2-3 चुम्बन लिए। उसका बदन अब हल्के से काँप गया था। और जब मैं उसकी पैन्टी नीचे कर रहा था तब उसने शर्म से अपना चेहरा अपने हाथों से ढ़क लिया। इस तरह से उसका शर्माना गजब ढ़ा गया।

चूत को उसने एक दिन पहले ही साफ़ किया था, सो उसकी गोरी चूत बग-बग चमक रही थी। मैंने उसके चूत को पूरा अपने मुट्ठी में पकड़ कर हल्के से दबा दिया, तो वो आआह्ह्ह्ह कर उठी।

मैंने अपना मुँह उसकी चूत से लगा दिया और वो चुसाई की, वो चुसाई की गोरी-गोरी चूत की कि वो एक दम लाल हो गई जैसे अब खून उतर जाएगा।

वो अब चुदास से भर कर कसमसा रही थी, कराह रही थी। उसकी हालत देख मैंने रागिनी की तरफ़ आँख मारी और कहा- सानिया बेटा, अब जरा तुम भी मेरा चूसो, अच्छा लगेगा।

वो काँपते आवाज में बोली- नहीं चाचू, अब कुछ नहीं ! अब बस आप घुसा दो मेरे भीतर ! अब बर्दाश्त नहीं होगा, प्लीज...!

मैंने उसको छेड़ा- क्या घुसा दूँ, जरा ठीक से बोलो ना।

रागिनी मेरे बदमाशी पर हँस दी, बोली- अंकल, क्यों दीदी को तड़पा रहे हो, कर दो जल्दी।

सानिया लगातार प्लीज घुसाओ ! प्लीज ! कर रही थी। मैंने फ़िर कहा- बोलो भी ! अब क्या घुसा दूँ, कहाँ घुसा दूँ, मुझे समझाओ भी जरा।

सानिया सच अब गिड़गिराने लगी, बोली- चाचा, प्लीज...!

वो अपने हाथ से अपनी चूत सहला रही थी।

मैंने भी कहा- एक बार कह दो साफ़ साफ़ डार्लिंग, उसके बाद देखो, जन्न्त की सैर करा दूंगा, बस तुम्हारे मुँह से एक बार सुनना चाहता हूँ पहले।

अब सानिया ने बोल ही दिया- मेरे अच्छे चाचू, प्लीज अपने लण्ड को मेरी चूत में डाल कर मुझे चोद दो एक बार, अब रहा नहीं जा रहा।

मेरा लण्ड जैसे फ़टने को तैयार हो गया था ये सब सुन कर। वर्षों से यही सोच सोच कर मैंने मुठ मारी थी सैकड़ों बार। मैं जोश में भर कह उठा- ओके, मेरे से चुदाना चाहती हो, ठीक है खोलो जाँघें। और मैंने उसकी जाँघों के बीच बैठ कर लण्ड को उसकी लाल भभूका चूत की छेद से भिड़ा दिया।

मैंने कहा- डालूँ अब भीतर?

सानिया चिढ़ गई- ओह, अब चोद साले ! बात मत कर ! आह।

इस तरह जब वो बोल पड़ी तो मैं समझ गया कि अब साली को रन्डी बन जाने में देर ना लगेगी। मैंने एक जोर के धक्के के साथ आधा लण्ड भीतर पेल दिया। उसके चेहरे पर दर्द की रेखा उभरी पर उसने होंठ भींच लिए। अगला धक्का और जोर का मारा और पूरा 8" जड़ तक सानिया की चूत में घुसेड़ दिया।

वो चीख पड़ी- हाय माँ, मर गई रे....।

उसकी आँखें बन्द थी और उस जोरदार धक्के के बाद मैं थोड़ा एक क्षण के लिए रुका कि रागिनी की आवाज सुनाई दी- ओह माँ।

मैंने आँख खोली, देखा सानिया की दोनों आँखों से एक-एक बूँद आँसू निकल कर गाल पर बह रहे थे, रागिनी साँस रोके अपने हाथों से मुँह ढ़के बिस्तर देख रही थी।

और तब मुझे अहसास हुआ कि सानिया कुँवारी कली थी और मैंने उसकी सील तोड़ी अभी-अभी। बिस्तर पर उसकी कुँवारी चूत की गवाही के निशान बन गए थे, बल्कि अभी और बन रहे थे।

मैं समझ गया कि कितनी तकलीफ़ हुई है सानिया को, सो अब मैंने उसको पुचकारा- हो गया बेटा हो गया सब, अब कुछ दर्द ना होगा कभी।

रागिनी भी उसके बाल सहला रही थी- सच दीदी, अब सब ठीक है, इतना तो सब लड़की को सहना होता है...।

सानिया भी अब थोड़ा सम्भली और होंठ भींचे भींचे सर को हिलाया कि सब ठीक है। और तब मैंने अपना लण्ड बाहर-भीतर करना शुरु किया। 4-6 बार बाद लण्ड ने अपना रास्ता बना लिया और फ़िर हौले-हौले मैं भी अब सही स्पीड से सानिया की चुदाई करने लगा। वो भी अब साथ दे रही थी। 8-10 मिनट बाद मैंने अपना सारा माल चूत के ऊपर पेट की तरफ़ निकाल दिया। वो निढ़ाल सी बिस्तर पर पड़ी थी। रागिनी ने चादर से ही उसकी चूत पौंछ दी और फ़िर उसको सब दिखाया।

सानिया बोली- अब तो पक्का हुआ ना कि मैंने रेहान के साथ कुछ नहीं किया था, पर ये सब अम्मी-अब्बू कैसे जान पाएँगें?

उसकी आँखों में आँसू आ गए। मैंने उसे अपनी बाँहों में समेट लिया- छोड़ो यह सब बात, आज तो सिर्फ़ अपनी जवानी का जश्न मनाओ।

मुझे अब पेशाब लग रही थी, सो मैं बिस्तर से उठ गया। अब दोनों लड़कियाँ भी उठ कर कपड़े पहनने लगीं। आधे घन्टे बाद चाय-बिस्कुट के साथ सानिया अपनी पहली चुदाई का अनुभव बता रही थी।

रागिनी ने उसे समझाया कि अभी एक-दो बार और दर्द महसूस होगा पर ऐसा नहीं, मीठा दर्द लगेगा, उसके बाद जब बूर का मुँह पुरा खुल जायेगा तब बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा, चाहे जैसा भी लण्ड भीतर डलवा लो। मुझे अब बिल्कुल भी दर्द नहीं होता।

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