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Tuesday, March 29, 2011

यौन क्षुधा

अकेलापन भी कितना अजीब होता है। कोई साथ हो ना हो, पुरानी यादें तो साथ रहती ही हैं। मैं छुट्टियों में गांव में दादा-दादी के पास आ गई थी। वो दोनों मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरे आने से उन दोनों का अकेलापन भी दूर हो जाता था। पड़ोसी का जवान लड़का भूरा भी मेरी नींद उड़ाये रखता था। ऐसा नहीं था कि मैंने अपनी जिन्दगी में वो पहला लड़का देखा था। मैंने तो बहुतों के लण्ड का आनन्द पाया था। पर ये भूरा लाल, वो मुझे जरा भी लिफ़्ट नहीं देता था। आज शाम को फ़िजां में थोड़ी ठण्डक हो गई। मैं अपना छोटा सा कुर्ता पहन कर छत पर आ गई। ऊपर ही मैंने ब्रा और चड्डी दोनों उतार दी और एक तरफ़ रख दी।

मेरी टांगों के बीच ठण्डी हवा के झोंके टकराने लगे। जैसे ही हवा ने मेरी चूत को सहलाया मुझे आनन्द सा आने लगा। मेरा हाथ स्वतः ही चूत पर आ गया और अपनी बड़ी बड़ी झांटों के मध्य अपनी चूत को सहलाने लगी। कभी कभी जोश में झांटो को खींच भी देती थी। मैंने सतर्कता से यहाँ-वहाँ देखा, शाम के गहरे धुंधलके में आस-पास कोई नहीं था। शाम गहरा गई थी, अंधेरा बढ़ गया था। मैं पास पड़ी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गई और हौले हौले अपनी योनि को सहलाने लगी, मेरा दाना कड़ा होने लगा था। मैंने अपना कुर्ता ऊपर कर लिया था और झांटों को हटा कर चूत खोल कर उसे धीरे धीरे सहला रही थी, दबा रही थी।

मेरी आंखें मस्ती से बन्द हो रही थी। अचानक भूरा आया और मेरी टांगों के पास बैठ गया। उसने मेरे दोनों हाथ हटाये और अपने दोनों हाथों की अंगुलियों से मेरी चूत के पट खोल दिये। मुझे एक मीठी सी झुरझुरी आ गई। उसकी लम्बी जीभ ने मेरी चूत को नीचे से ऊपर तक चाट लिया। फिर मेरी झांटें खींच कर अपने मुख को योनि द्वार से चिपका लिया। मेरी जांघों में कंपकंपी सी आने लगी। पर उसकी जीभ मेरी चूत में लण्ड की तरह घुस गई। मेरे मुख से आह निकल पड़ी। वो मेरी झांटे खींच खींच कर मेरी चूत पीने लगा। मैंने भूरा के बाल पकड़ कर हटाने की कोशिश की पर बहुत अधिक गुदगुदी के कारण मेरे मुख से चीख निकल गई।

तभी मेरी तन्द्रा जैसे टूट गई। मेरे हाथों में उसके सर बाल की जगह मेरी झांटें थी। मैंने जल्दी से इधर उधर देखा, ओह कैसा अनुभव था ! मैं अपने पर मुस्करा उठी और आश्वस्त हो कर बैठ गई।

चूत में मची हलचल के कारण मेरा शरीर बल सा खाने लगा। मेरी झांटें मेरे चूत के रस से गीली हो गई थी। मैंने अपने उरोजों पर नजर डाली और उसकी घुण्डियों को मल दिया। मेरी चूत में एक मीठी सी टीस उठी। मैं जल्दी से उठी और झट के एक दीवार की ओट में नीचे उकड़ू बैठ गई और अपनी टांगें चीर कर अपनी योनि को सहलाने लगी। फिर अपने सख्त होते दाने को सहला कर अपनी एक अंगुली धीरे से चूत के अन्दर सरका ली।

"दीदी , मजा आ रहा है ना…" भूरा पास में खड़ा हंस रहा था।

"तू … ओह … कब आया … देख किसी को कहना मत…" मैं एकाएक बौखला उठी।

"यह भी कोई कहने की चीज है … मुठ मारने में बहुत मजा आता है ना?" वो शरारत से बोला।

"तुझे मालूम है तो पूछता क्यूँ है … तुझे मुठ मारना है तो यहीं बैठ जा।" मैंने उसे प्रोत्साहित किया।

"सच दीदी, आपके पास मुठ मारने में तो बहुत मजा आयेगा … आप भी मेरे लण्ड परदो हाथ मार देना।" उसने अपने पजामे में से अपना लौड़ा हिलाते हुये कहा।

"चल आजा … निकाल अपना लौड़ा …यूं इसे हिला क्या रहा है?" मैंने मुस्कराते हुये कहा।

भूरा अपना पजामा उतार कर मेरे पास ही बैठ गया और लण्ड को हाथ में लेकर हिला-हिला कर मुठ मारने लगा। उसे देख कर मुझे अति संवेदना होने लगी, मुझे भी हस्त मैथुन करने में अधिक मजा आने लगा। भूरा तो मेरी चूत देख देख कर जोर-जोर से हाथ चलाने लगा। तभी उसके लण्ड से एक तेज पिचकारी उछल पड़ी और उसका वीर्य हवा में लहरा उठा। मेरे शरीर ने भी थोड़ा सा बल खाया और मेरा पानी भी निकल पड़ा।

"भूरा … भूरा … आह मैं तो गई … साली चूत ने रस निकाल दिया।" मैं आह भरती झड़ने लगी।

मैंने अपनी आंखे खोल कर भूरा को निहारा … पर वहाँ अंधेरे के अलावा कुछ भी नहीं था। मैं अपनी सोच पर फिर से झेंप कर मुस्करा पड़ी। मैं झड़ कर उठ खड़ी हुई। फिर से एक बार कुर्सी पर बैठ गई।

तभी दादी ने मुझे पुकारा। मेरे विचारो की श्रृंखला भंग हो गई। मैंने फ़ुर्ती से अपनी ब्रा और चड्डी ली और नीचे भाग आई। दादी ने मेरे हाथ ब्रा और चड्डी देखी तो मुस्करा पड़ी। फिर दादी भोजन की थाली रख कर सोने चली गई थी। मैं भी भोजन करके अपने कमरे में आ गई।

रात को लेटे लेटे मुझे फिर भूरा के ख्यालों ने आ घेरा। मेरी चुदाई को काफ़ी महीने गुजर गये थे सो पल पल में मेरी योनि में कुलबुलाहट होने लगती थी। कैसा होता यदि भूरा मेरे पास होता और अपना लण्ड मेरे मुख में डाल कर मुझे चुसाता। ऊह ! साले लड़के तो मुख ही चोद डालते है। वो विनोद ! मैंने उसे क्या लिफ़्ट दे दी कि मेरी गाण्ड से चिपक कर कुत्ते की तरह कमर चलाने लगा। सोच सोच कर मुझे हंसी आने लगी।

"दीदी, अब हंसना बन्द करो और मेरा ये लण्ड अपने मुख में लॉलीपॉप की तरह चूस डालो।" भूरा मुझे घूर घूर कर देख रहा था। उसका मोटा लण्ड उसके हाथों में हिला रहा था।

"चल हट, बेशरम … ऐसे भी कोई लण्ड को मुख आगे हिलाता है।" मैंने उसे दूर करते हुये कहा।

"प्लीज, अपना योनि जैसा मुख खोलो ना… आह … हाँ, यह हुई ना बात।" मेरा मुख बरबस ही अपने आप खुल गया।

उसके मुख से आह निकल गई। मेरे मुख में उसका मोटा लण्ड इधर उधर घूम रहा था। तभी मैंने उसके लौड़े की चमड़ी खोल कर पीछे खींच दी, आह … लाल सुर्ख सुपारा !

मेरा मन मचल गया … उसके छल्ले को मैंने कस कस कर चूस लिया।

"दीदी, ज्यादा नहीं, निकल जायेगा …" वो आनन्द से मचलता हुआ बोला।

"इतना मस्त सुपारा … चल मेरी चूत में इसे घुसेड़ कर मुझे मस्त कर दे।" मेरी चूत अब रतिरस से सराबोर होने लगी थी।

उसने तुरन्त मेरी टांगों के बीच में आकर उन्हें ऊपर उठा दिया। इतना ऊपर कि मेरी गाण्ड की गोलाईयाँ तक भी ऊपर उठ गई। तभी आशा के विपरीत उसने मेरी गाण्ड में लण्ड घुसा डाला। लण्ड बिना किसी तकलीफ़ के असीम आनन्द देता हुआ सरसराता हुआ गाण्ड में घुस गया।

"ओह … भूरा… मार दी मेरी गाण्ड … अच्छा चल … शुरू हो जा !" मैं आनन्द से लबरेज हो कर मचल पड़ी।

"दीदी सच कहूँ, सारा रस तो तेरे चूतड़ों की गोलाईयों में ही तो है … मेरा मन इन्हें मटकते देख कर मचल जाता है और लगता है कि बस अब तेरी गाण्ड चोद दूं।"

उसकी सारी आसक्ति मेरे चूतड़ों की सुन्दरता पर थी, जिसे देख कर उसका लण्ड फ़ड़क उठता था।

मैं हंस पड़ी … " भूरा, मस्ती से चोद दे … मुझे भी मजा आ रहा है…"

मेरी गाण्ड चोदते चोदते उसने अब मेरी चूत को सहला कर धीरे से उसमें लण्ड घुसा दिया। मेरी चूत जैसे सुलग उठी। उसके भारी हाथ मेरी छातियों को मरोड़ने लगे। मैं उसके चोदने से मस्त होने लगी। वो अब मेरे ऊपर लेट गया और अपने दोनों हाथों पर शरीर का भार ले कर ऊपर उठ गया। अब उसके शरीर का बोझ मेरे ऊपर नहीं था। वो और मैं बिलकुल फ़्री थे। मुझे भी अपनी चूत उछालने का पूरा मौका मिल रहा था। वो बार बार चूम कर मेरी चूत पर जोर से लौड़ा मार रहा था। मेरा शरीर जैसे वासना के मारे उफ़न रहा था। अधखुली आंखों से मैं उसके रूप का स्वाद ले रही थी, उसके चेहरे के चोदने वाले भाव देख रही थी। मेरी उत्तेजना चरमसीमा पर थी। तभी मैं चीख पड़ी और मेरा रज छूट गया। तभी भूरा ने अपना लण्ड निकाला और और मेरे मुख में पूरा घुसेड़ दिया। तभी उसका वीर्य मेरे मुख में निकल पड़ा और हलक में उतरता चला गया। मेरा रज निकलता जा रहा था और मैं पस्त हो कर अंधेरे में खोती जा रही थी।

सवेरे जब आँख खुली तो मेरा कुर्ता ऊपर था और दादी मां मुस्करा कर मुझे चादर ओढ़ा रही थी।

"बिटिया रानी, कोई सुन्दर सपना देख रही थी ना?"

मैं चौंक गई और मैंने चादर देखते ही समझ लिया कि दादी ने मेरा नंगापन देख लिया है।

"दादी मां, वो तो अब… सपने तो सपने ही होते हैं ना !"

दादी मेरे पास बैठ गई और अपने जवानी के किस्से बताने लगी। पर मेरा ध्यान कहीं ओर ही था। भूरा घर के अन्दर से कुछ सामान ले जा रहा था।

"दादी, भूरे को एक बार यहाँ बुला दो …" मैंने दादी को टोकते हुये कहा।

"आजकल की लड़कियाँ ! मेरी बात तो सुन ही नहीं रही है … सारा ध्यान जवान लड़कों पर रहता है। अरे भूरे … यहाँ तो आ !"

भूरा ने अन्दर आते ही मुझे देखा और मुड़ कर वापस जाने लगा।

"ऐसा क्या है भूरा, जो मुझे देख कर जा रहे हो …"

"दीदी, मुझे काम याद आ गया है …" और वो दो छंलागों में कमरे से बाहर भाग गया। मैं उसकी बेरुखी पर तड़प उठी। सारी छुट्टियाँ अब क्या मुझे सपनों में जीना होगा। उह ! यहाँ तो कोई चोदने वाला भी नहीं मिलता। छुट्टियों में शहर से सभी लड़के अपने अपने घर चले गये थे … कौन था भला मुझे चोदने वाला …

किससे अपनी चूत की प्यास बुझाऊँ…? मुझे लगा कि अब यहाँ से जल्दी ही प्रस्थान करना चाहिये। कब तक भला अकेली ही पड़ी विचारों का मैथुन करती रहूँ, मुझे तो सख्त लौड़े की आवश्यकता थी जो चूत के या गाण्ड के भीतर तक जाकर मेरी यौन क्षुधा तृप्त कर सके !

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