सोना कई वर्षों से घर में नौकरानी का काम करती थी। नीरजा और करण पति पत्नी थे और उनकी कोई सन्तान नहीं थी। करण का व्यवसाय अच्छा चल रहा था। नीरजा तो बस अपनी सहेलियों के साथ किटी पार्टी और दूसरे कामों में लगी रहती थी। उसका झुकाव करण के एक व्यवसायी मित्र आनन्द और मन्जीत की तरफ़ भी था। उनकी और नीरजा की मित्रता के कारण वो करण को अधिक समय नहीं दे पाती थी, रात्रि-मिलन भी कम ही हो पाता था। करण को उसके इन सम्बन्धों का पता था, ऐसे में कई महीनों से करण का झुकाव घर की नौकरानी सोना की तरफ़ हो चला था। उसका बदन तराशा हुआ था। वो दुबली पतली इकहरे बदन की थी, उसकी छातियाँ सुडौल और मांसल थी। बदन पर लुनाई थी। कसे बदन वाली सोना से करण कई बार प्रणय की कोशिश भी कर चुका था। पर सोना सब समझ कर भी उनसे दूर रहती थी। उसे पता था कि नीरजा को पता चलेगा तो उसकी जमी हुई नौकरी हाथ से चली जायेगी। सोना का दिल भी करण को चाहने लगा था।
सोना का पति एक बूढ़ा आदमी था जो लगभग 60 वर्ष का था, बीमार रहता था। पैसों का लालच देकर उसने कम उम्र सोना को ब्याह लिया था। पर उसके साथ शारिरिक सम्बन्ध ना के बराबर थे। नीरजा अक्सर उससे चुदाई की बातें पूछा करती थी। सोना निराशा से उसे बरसों पहले हुई अपने आदमी की चुदाई की बातें बताती थी, कि कैसे वो दारू पी कर उसके साथ चुदाई क्या बल्कि बलात्कार करता था। सोना जब उससे करण से चुदाई के बारे में पूछती तो वो नीरजा बहुत रंग में आकर उसे सेक्सी बातें बताया करती थी। सोना तो जैसे उसकी बातें सुन कर सपनो में खो जाया करती थी। नीरजा उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव को देखती थी, उसके भावों को समझती थी।
एक दिन सोना को नीरजा ने बड़े प्यार से झटका दे दिया,"सोना, करण से चुदवायेगी ?"
सोना की आँखें फ़टी की फ़टी रह गई। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि नीरजा क्या कह रही है।
"जी, क्या कहा आपने ?"
"करण तुझ पर मरता है, तुझे चोदना चाहता है !"
"दीदी, यह आप कह रही है, वो तो मुझे भी अच्छे लगते हैं, पर यह सब? तौबा !"
"अच्छा, मैं तुझे इस काम के लिये बहुत पैसे दूंगी, प्लीज सोना मान जा !"
सोना ने मुस्करा कर अपना सर झुका लिया। वो धीरे से नीरजा के पास जाकर नीचे बैठ गई और उसके पैर पकड़ लिये।
"मेरी किस्मत ऐसी कहाँ है, दीदी ... आपकी मेहरबानी सर आँखो पर ... मैं तो हमेशा के लिये आपकी दासी हो गई..."
नीरजा ने उसे उठा कर अपने गले से लगा लिया।
शाम को सोना काम पर आई तो सोना ने अपने हिसाब से अपना मेकअप किया हुआ था। पर नीरजा ने उसे फिर से अच्छा सा सजाया और उसे करण के कमरे में काम करने के लिये भेज दिया। करण ने उसे देखा तो वो देखता ही रह गया। सोना इतनी खूबसूरत है यह तो उसने कभी सोचा भी नहीं था। नीरजा जानती थी कि करण को क्या पसन्द है उसने उसे वैसा ही सजा दिया था।
"सोना, तुम तो बहुत सुन्दर हो ... जरा पास तो आओ !"
सोना सकुचाती हुई उसके पास चली आई।
करण उसे छू कर बोला,"ये तुम्हीं हो ना या कोई सपना !"
सोना ने अपनी बड़ी बड़ी आँखें धीरे धीरे करके ऊपर उठाई और मुस्कराई।
"आपने तो हमें कभी ठीक से देखा तक नहीं, भला नौकरों की तरफ़ क्यूँ कोई देखेगा?"
करण ने उसके मुख पर अपनी अंगुली रख दी। सोना एक कदम और आगे बढ़ गई, उसे नीरजा की तरफ़ से छूट जो मिल गई थी। करण ने उसको इतना समीप से कभी नहीं देखा था। उसकी शरीर की खुशबू करण के नथुनो में समाती चली गई। करण ने अन्जाने में सोना का हाथ पकड़ लिया। सोना पर जैसे हजारों बिजलियाँ कड़क उठी, शरीर थर्रा गया। करण की गरम सांसें अपने चेहरे पर आती हुई प्रतीत हुई। उसने आँखें खोली तो देखा करण के होंठ उस तक पहुँच रहे थे। सोना घबरा सी गई, उसे लगा कि यह पाप है।
"ना, भैया, नहीं ! मैं गरीब मर जाऊंगी !" उसकी आवाज में घबराहट और कम्पन था।
"नहीं, आज ना मत कहो, कब तक मैं जलता रहूंगा?"
"गरीब पर दया करो, भैया जी।"
पर करण ने उसे दबोच लिया और उसके पतले पंखुड़ियों जैसे होंठों को अपने होंठों से लगा लिया। करण के हाथ उसकी पीठ को यहाँ-वहाँ दबाने लगे थे। सोना होश खोती जा रही थी। उसके सपनों का साथी उसे मिल गया था।
तभी ताली की आवाज आई,"बहुत खूब ! तो यह सब हो रहा है? तो करण, तुमने सोना को पटा ही लिया?" नीरजा सभी कुछ देख रही थी, बस उसे उसे अच्छा मौका चाहिये था, कमरे में प्रवेश करने के लिये।
"नहीं, नीरजा वो तो यूँ ही मैं..."
"... किस कर रहा था, किये जाओ, रुक क्यों गये ?"
"अरे तुम तो बुरा मान गई, सोना, जाओ यहाँ से... चलो !"
"अरे नहीं, करण मुझे बुरा नहीं लगा, हां पर सोना को जरूर लगेगा। लगे रहो, मैं खुश हूँ कि तुमने सोना को पटा लिया ... चलो शुरू हो जाओ !"
नीरजा वापस अपने कमरे में लौट गई। जाते जाते उसने कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया। सोना ने करण को फिर से अपने से चिपका लिया और दोनों प्यार करने लगे।
करण ने सोना का स्तन अपने हाथों में लेकर उसे सहलाना आरम्भ कर दिया। सोना की चूचियाँ सख्त होने लगी। चुचूक कड़े हो कर और भी सीधे हो गये। सोना के दिल पर उन दोनों के इस नाटक का कोई असर नहीं हुआ था, वो तो चुदने को बेताब थी। करण ने सोना का ब्लाऊज सामने से खोल दिया था और उसके नंगे उरोजों को दबा रहा था। सोना से भी नहीं रहा गया तो उसने उसका कड़क लण्ड पकड़ लिया, उसकी पैन्ट खोल कर खींच कर बाहर निकाल लिया और उसे धीरे धीरे मलने लगी। दोनों के मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी थी।
तभी नीरजा बिल्कुल नंगी हो कर कमरे में आ गई। उसने आते ही करण को आंख मारी जो सोना ने भी देख लिया था। उसने पीछे से आकर सोना का ब्लाऊज उतार दिया और उसकी साड़ी भी उतार दी।
"कहो सोना, पेटीकोट भी उतार दूँ या इसे ऊँचा करके काम चलाओगी?" नीरजा हंसीयुक्त आवाज ने सोना को शर्म से पानी पानी कर दिया। नीरजा ने जल्दी से उसका नाड़ा खोला और पेटीकोट नीचे सरका दिया। सोना का दमकता रूप देख कर वो स्वयं भी हैरान रह गई। कीचड़ में कमल का फ़ूल ! सोना का एक एक अंग तराशा हुआ था, गजब के कट्स थे। उसकी गहराईयाँ और उभार बहुत पुष्ट और सुघड़ थे। नीरजा ने सोचा कि तभी करण इस पर मरता था, मरना ही चाहिये था ! उसे खुद का जिस्म देख कर शर्म सी आने लगी थी, साधारण सा उभार, कोई विशेष बात नहीं, फिर भी करण उसे बहुत प्यार करता था, बहुत इज्जत देता था।
नीरजा करण के पास गई और उसकी पैंट और चड्डी उतारने लगी। फिर उसकी बनियान भी उतार दी। नीरजा ने उन दोनों देखा, लगा कि जैसे ये दोनों एक दूसरे के लिये ही बने हैं। किस्मत का खेल देखो, सोना को मिला बुढ्ढा और मुझे मिला एक सजीला खूबसूरत जवान, जिसकी उस स्वयं ने कभी कदर नहीं की।
नीरजा बड़े प्यार से दोनों को धीरे धीरे सेज पर ले गई।
" सोना, कहो, पहले आगे या पिछाड़ी, ये गाण्ड बहुत प्यारी मारते हैं।"
वो शर्म से सिमटने लगी। उसका चेहरा लाल हो चुका था।
"दीदी, कैसी बातें करती हो, मैं तो आपकी दासी हूँ ... ये तो जैसी आपकी इच्छा..."
"अच्छा करण तुम बताओ, क्या मारोगे, सोना की चूत या गाण्ड ?"
"मेरी प्यारी सोना की गोल गोल गाण्ड बड़ी मोहक है, नीरजा चलो वहीं से आरम्भ करते हैं।"
"तो सोना जी, हो जाओ तैयार, और कर दो अपनी मेहरबानी करण पर, उठ जाओ और बन जाओ घोड़ी !"
सोना उठ कर पलट कर अपनी गाण्ड ऊंची कर ली और घोड़ी सी बन गई। उसके खूबसूरत गोरे गोरे चूतड़ो का जोड़ा चमक रहा था, उसमें से उसकी प्यारी गाण्ड का फ़ूल खिलता हुआ नजर आ रहा था। भूरा और गुलाबी रंग का द्वार ... करण से रहा नहीं गया। वो झुक गया गया। उसकी लम्बी सी जीभ लपलपा कर उसकी गाण्ड चाटने लगी। जीभ को मोड़ कर उसने गाण्ड के भीतर भी घुसाने की कोशिश की। उसका यह कृत्य सोना को बहुत आनन्दित कर रहा था। नीरजा भी अपने हाथों से सोना के चूतड़ों को पकड़ कर खींच कर और खोल रही थी। सोना की चूत रस से भर गई थी और उसका गीलापन बाहर निकल रहा था। उसकी चूत का जायका भी उसकी जीभ ने मधुरता से ले ही लिया। सड़ाक सड़ाक करके उसका रस करण के मुख में प्रवेश कर गया। सोना ने वासना से भर कर नीरजा की जांघ को अपने दांतों से काट लिया।
"अब हो जाये ... एक भरपूर वार !" नीरजा ने करण को इशारा किया और अपनी कोल्ड क्रीम की शीशी खोल कर सोना के गाण्ड के भीतर और बाहर चुपड़ दी। थोड़ी सी करण के लौड़े पर भी लगा दी। करण तो बहुत उतवला होने लगा था। वो अपना लण्ड सोना की गाण्ड पर लगा कर दबाने लगा। क्रीम का असर था, लण्ड फ़क से भीतर चला गया। सोना चिहुंक उठी। फिर एक हल्का झटका, लण्ड एक चौथाई अन्दर घुस गया। उसे दर्द हुआ, उसका जबड़ा दर्द से भिंच गया। दूसरे झटके में लण्ड आधा अन्दर पहुँच गया था। उसके चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आई थी। एक हल्की सी कराह निकल पड़ी थी। नीरजा का इशारा पा कर करण ने भी अब रहम करना छोड़ दिया और आखिरी शॉट जोर से मार दिया। लण्ड पूरा घुस चुका था। सोना के मुख से एक चीख निकल पड़ी।
"बहुत दर्द होता है, दीदी, कहो ना धीरे से चोदें !"
पर करण कहाँ सुनने वाला था। उसने उसे तीव्र गति से चोदना आरम्भ कर दिया था, वो कराहती जा रही थी। नीरजा उसके स्तनों को मसल मसल कर उसे मस्त करना चाह रही थी, पर शायद दर्द अधिक हो रहा था। कुछ देर यूँ ही गाण्ड चोदने के बाद उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
नीरजा समझ गई थी कि अब उसे चूत की चाह है। नीरजा ने सोना की चूत पर हाथ फ़ेरा और उसकी चूत खोल दी। रस से लबरेज चूत लप-लप कर रही थी। लण्ड के गाण्ड से निकलते ही सोना ने राहत की सांस ली। तभी नीरजा ने उसकी चूत खोली तो वो मस्त होने लगी। उसे लगा कि अब मुझे एक प्यारा सा लण्ड मिलने वाला है। वो वर्षों से नहीं चुदी थी, वो गाण्ड का दर्द भूल कर आसक्ति से करण को देखने लगी,"भैया, अन्दर डालो ना ... मुझे मस्त कर दो... हाय !"
नीरजा ने करण का लौड़ा पकड़ कर उसकी योनि में प्रवेश करा दिया। लण्ड के घुसते ही उसके मुख से सुख भरी आह निकल गई। उसने नीरजा का इशारा पा कर धीरे धीरे लण्ड से चूत में घर्षण आरम्भ कर दिया। पर एक स्थान पर जाकर वो रुक गया, उसने देखा कि लण्ड तो आधा ही अन्दर घुसा है, उसने जोर मार कर धक्का दिया।
सोना चीख उठी,"धीरे से ... यहाँ भी दर्द हो रहा है ... भैया प्लीज !"
पर करण ने फिर से एक धक्का और दिया। वो फिर से चीख उठी। तभी करण ने अगला करारा शॉट जोर से मारा। सोना दर्द से बिलख उठी।
"भैया, क्या फ़ाड़ ही डालोगे !"
"नहीं री मेरी सोना, देखो गाण्ड में भी दर्द हुआ था ना, क्या हुआ ... बस दर्द ही ना ... फिर तो रोज चुदवाओगी तो मजा आने लगेगा।"
"सच भैया, मुझे रोज चोदोगे..." सोना खुश हो गई।
अब करण जम के चुदाई करने लगा। कुछ ही देर में सोना भी मस्त होने लगी। उसे बहुत ही आनन्द आने लगा। वो भी सीत्कार के रूप में अपना आनन्द दर्शा रही थी। वो अपनी गाण्ड और भी पीछे की ओर उभार कर चुदवाने लगी थी। नीरजा मुस्कराती हुई उसके स्तन मसल रही थी। फिर नीरजा करण के पीछे चली आई। करण सोना का स्तन मर्दन करने लगा था। तभी करण की गाण्ड में नीरजा ने चिकनाई लगाकर अपनी एक अंगुली घुसेड़ दी। उसे पता था कि ऐसे करने से करण बहुत उत्तेजित हो जाता था। करण की लटकती गोलियाँ नीरजा दूसरे हाथ से पकड़ कर खींच रही थी और सहला रही थी। अंगुली तेजी से गाण्ड के अन्दर-बाहर आ-जा रही थी। करण जबरदस्त उत्तेजना का शिकार होने लगा। तभी सोना ने एक खुशी की किलकारी भरी और झड़ने लगी। उसके झड़ने के बाद नीरजा ने करण का कड़क लण्ड बाहर खींच लिया। सोना निढाल हो कर बिस्तर पर चित लेट गई।
नीरजा ने करण का लण्ड अपने मुठ में भर लिया। गाण्ड में अंगुली से चोदते हुये उसने करण का मुठ मारना आरम्भ कर दिया। करण आनन्द के मारे तड़प उठा और उसकी एक वीर्य की मोटी धार लण्ड मे से पिचकारी जैसी निकल पड़ी। वीर्य सोना के अंगो में गिर कर उसे गीला करता रहा। करण ईह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़ करके झड़ता रहा। नीरजा ने करण को अपने वक्ष से लगा लिया और प्यार करने लगी।
"करण मजा आया ना?"
"पूछने की बात है कोई, ये तो कमाल की चीज़ है यार !"
"अब तो मुझे आनन्द से चुदाई के लिये मना तो नहीं करोगे ना ?" नीरजा ने अपना मतलब निकाला।
"अरे आनन्द क्या, वो मंजीत सरदार के लिये भी कुछ ना कहूँगा।"
नीरजा ने उसे करण को बहुत प्यार किया फिर सोना से लिपट कर बोली,"आज से तुम मेरी नौकरानी नहीं, सौत नहीं, मेरी बहन हो। तुम चाहो तो मैं तुम्हें आनन्द और मन्जीत से भी चुदवा दूंगी।" नीरजा भाव में बह कर बोलने लगी।
"दीदी, आप जिससे कहेंगी, मैं मजा ले लूंगी, देखो भूलना नहीं, वो आनन्द और मन्जीत वाली बात।"
तीनों एक दूसरे से लिपट कर प्यार करने लगे।
कामिनी सक्सेना
No comments:
Post a Comment